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इमरान प्रतापगढ़ी: आवाज़-ए-अदब से सियासत तक का सफ़र।

इमरान प्रतापगढ़ी ने ऐसे मनाया जन्म दिन:

? हेडलाइन: इमरान प्रतापगढ़ी जन्मदिन विशेष 

रिपोर्ट: अब्दुल नईम

लखनऊ, उत्तर प्रदेश।

मुरादाबाद से ताल्लुक रखने वाले और प्रतापगढ़ की सरज़मीं पर जन्मे मशहूर शायर और कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी आज न सिर्फ़ उर्दू अदब की दुनिया में एक रौशन नाम हैं, बल्कि भारतीय राजनीति में भी अपनी मज़बूत मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं। 6 अगस्त 1987 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले के चमरूपुर शुक्लान शमशेरगंज गांव में जन्मे इमरान का असली नाम मोहम्मद इमरान खान है।

उनके पिता डॉ. मोहम्मद इलियास खान एक चिकित्सक हैं और माता गृहिणी। दिलचस्प बात यह है कि उनके परिवार का साहित्य से कोई पूर्व संबंध नहीं रहा, लेकिन इमरान ने खुद अपने हुनर और मेहनत से एक नई इबारत लिखी।

✒️ काव्य की शुरुआत और प्रेरणा

प्रारंभिक शिक्षा के बाद इमरान की मुलाकात अवधि के प्रसिद्ध कवि स्व. आद्या प्रसाद मिश्र 'उन्मत्त' से हुई, जिनसे उन्हें प्रेरणा मिली। साथ ही, केपी इंटर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और साहित्यकार लाल बहादुर सिंह ने भी उनका मार्गदर्शन किया। इमरान ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान वे हिंदी कविताएं लिखा करते थे और कवि सम्मेलनों में हिस्सा लेते थे।

2008 में उन्होंने मुशायरों की दुनिया में कदम रखा, और उनकी पहली चर्चित नज़्म "मदरसा" ने उन्हें देशभर में पहचान दिलाई।

? साहित्यिक पहचान

इमरान प्रतापगढ़ी अपनी राजनीतिक सोच से ओतप्रोत नज़्मों और ग़ज़लों के लिए मशहूर हैं, जो सामाजिक न्याय, अल्पसंख्यकों की आवाज़ और मानवीय मूल्यों की बुलंद पैरवी करती हैं।

उनकी चर्चित नज़्में हैं:

मदरसा

हाँ, मैं कश्मीर हूँ

मैं फलस्तीन हूँ

नजीब, उमर

उनके कुछ उल्लेखनीय शेरों में शामिल हैं:

> "वक़्त के हाक़िमों बादशाहों सुनो...

अब के सारी हदों से गुज़र जायेंगे

मत समझना डराने से डर जायेंगे..."

> "जब बुलबुल हो तस्वीरें चमन और कौवे गीत सुनाते हों

जब चिड़ियों के इन घोंसलों में कुछ साँप उतारे जाते हों..."

> "मैं फलस्तीन हूँ...

सिर्फ लाशें ही लाशें मेरी गोद में

कोई पूछे मैं क्यों इतना ग़मगीन हूँ..."

> "सुना था कि बेहद सुनहरी है दिल्ली

मगर एक मां की सदा सुन न पाये

तो लगता है गूंगी है, बहरी है दिल्ली!"

?️ सियासत में क़दम

इमरान प्रतापगढ़ी ने 2019 में कांग्रेस पार्टी से मुरादाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। वर्तमान में वे राज्यसभा सांसद हैं और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन भी हैं। उन्होंने न सिर्फ़ संसद बल्कि देशभर के राजनीतिक मंचों पर भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है।

? सम्मान और पहचान

इमरान को यश भारती पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है — यह सम्मान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाता है और आमतौर पर यह जीवन के अंतिम पड़ाव में मिलता है, लेकिन इमरान को यह मुक़ाम 28 वर्ष की आयु में ही मिल गया।

? प्रतापगढ़ की काव्य परंपरा में इमरान का योगदान

प्रतापगढ़ की धरती पर कई नामचीन कवि हुए —

हरिवंश राय बच्चन, सुमित्रानंदन पंत, भिखारी दास, नाज़िश प्रतापगढ़ी, जुमई खान आज़ाद, कृपालु महाराज, तारा सिंह, मोहसिन ज़ैदी आदि — लेकिन इमरान प्रतापगढ़ी ने जिस तरह से कम उम्र में लाखों दिलों पर राज किया, वैसा कम ही देखने को मिलता है।

हाल ही में मधुबनी, बिहार में आयोजित एक सभा में जो जनसैलाब उमड़ा, वह इस बात का गवाह था कि उनकी शायरी और सियासी सोच जनता के दिलों को छू रही है। कार्यक्रम में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, और तेजस्वी यादव की उपस्थिति ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया।

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✍️ निष्कर्ष

इमरान प्रतापगढ़ी सिर्फ़ एक शायर नहीं, बल्कि आवाज़ हैं उस तबक़े की, जो अक्सर हाशिये पर रख दिया जाता है। वे कलम से इंक़लाब लाने का यक़ीन रखते हैं — और यही उनकी असली ताक़त है।

> "जिसको मिल करके सदियों से लूटा गया

मैं वो उजड़ी हुई एक जागीर हूँ

हाँ मैं कश्मीर हूँ, हाँ मैं कश्मीर हूँ"

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? विशेष:

यह लेख एक साहित्यिक और सामाजिक दस्तावेज़ है, जो एक ऐसे युवा की कहानी कहता है, जिसने शब्दों को हथियार बना कर कई दिलों को जीत लिया।

Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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