शहाबुद्दीन अहमद
बेतिया, बिहार
विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के आह्वान पर आज पूरे बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण के विरोध में बिहार बंद का,जिला में भी चौंहूओर इसकाअसर पड़ा।शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के सभी दुकान पूर्णता बंद रही।कई जगह पर विरोधी पार्टियों के कार्यकर्ताओं, नेताओं के द्वारा ट्रेन रोकी गई बस का परिचालन भी रोका गया,दुकान बंद कराई गई।
कई जगह मशाल जुलूस निकालकर,सड़क को अवरोधकर रास्ता रोका गया।
विरोधी पार्टियों के कार्यकर्ताओं और नेतागणों के द्वारा सड़क पर नारेबाजी की गई,शहर के विभिन्न चौक चौराहा,लाल बाजार,मीना बाजार,बस स्टैंड,रेलवे स्टेशन, समाहरणालय चौक,छावनी चौक,नया बाजार चौक पर विशाल धरना प्रदर्शन किया गया,इस मौके पर भाजपा शासित मोदी सरकार के विरोध में नारे लगाए गए, चुनावआयोग पर भी पक्षपात करने काआरोप लगाया गया साथ ही यह भीआवाज लगाया गया कि चुनावआयोग बिहार के मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से निकालना चाहती है,बेबुनियाद कागजात को मांग कर,मतदाताओं को परेशान किया जा रहा है, विशेषकर,वैसे मतदाता जो ग्रामीण क्षेत्र के सुदूर क्षेत्रों में रह रहे हैं,जिनके पास कोई कागजात नहीं है,उनका नाम को भी जानबूझकर मतदाता सूची से काटने का कार्यक्रम बना हुआ है।जिन मतदाताओं का नाम,उनके माता,पिता का नाम वर्षों से चलाआ रहा है, मतदान करते चलेआ रहे हैं, उन्हें कागजात देने की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है,फिर भी चुनावआयोग जबरदस्ती करके कागजात मांग रहा है,जिससे मतदाता केअधिकार का हनन हो रहा है।जिन मतदाता का नाम मतदाता सूची में पहले से चलाआ रहा है,उससे कोई भी कागजात मांगना जुर्म है।
केंद्र की भाजपा शासित मोदी सरकार मतदाताओं के अधिकार को छीनना चाह रही है, मतदान केअधिकार से वंचित करना चाह रही है। केंद्र की भाजपा शासित मोदी सरकार चुनावआयोग को अपने नियंत्रण में ले रखा है, जैसा कहती है वैसा ही चुनाव आयोग कर रहा है,चुनाव आयोग सरकार की कठपुतली बनी हुई है। चुनाव आयोग के द्वारा प्रतिवर्ष से मतदाता सूची का पुनरक्षण किया जाता है, 18 वर्ष केआयु पूरे करने वाले सभी नए मतदाताओं का नाम जोड़ा जाता है,या जो विस्थापित हो गए हैं,या मृत्यु हो गई है,उनका नाम हटाया जाता है,तो फिर इस तरह के कार्यक्रम चलाने की क्या आवश्यकता पड़ गई?
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