भारत समाचार एजेंसी
जयपुर, राजस्थान।
ग़ौसे आज़म फ़ाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष व चीफ़ क़ाज़ी, हज़रत मौलाना सूफ़ी सैफुल्लाह क़ादरी ने, दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा "उदयपुर फाइल्स" की रिलीज़ पर रोक लगाने के फ़ैसले का ज़ोरदार स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय भारत के संविधान, धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समरसता की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है।देश को नफ़रत से बचाने का न्यायिक प्रयास। सूफ़ी सैफुल्लाह क़ादरी साहब ने कहा कि "उदयपुर फाइल्स" जैसी फिल्में, केवल एक घटना या व्यक्ति को नहीं दिखातीं, बल्कि पूरे मुस्लिम समुदाय और इस्लाम को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाती हैं। उन्होंने कहा कि “फिल्म के ट्रेलर में ही पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनकी पवित्र पत्नियों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की गईं — जो न सिर्फ धार्मिक अपमान है, बल्कि यह समाज में ज़हर घोलने की कोशिश है। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने समय रहते रोक लगाकर एक संविधानसम्मत, विवेकपूर्ण और साहसी फ़ैसला दिया है। हम न्यायपालिका के इस कदम का दिल से स्वागत करते हैं। यह सिर्फ फिल्म नहीं, ज़हरीला प्रोपेगेंडा है। ऐसी फिल्में "अभिव्यक्ति की आज़ादी" के नाम पर देश के मूल अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन करती हैं।अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 की सीधी अवहेलना होती है — यह केवल मुसलमानों की नहीं, पूरे भारत की गरिमा पर हमला है।उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि इससे पहले भी "द कश्मीर फाइल्स" और "द केरल स्टोरी" जैसी फ़िल्मों ने देश को बांटने और अल्पसंख्यकों को संदेह के घेरे में डालने का काम किया है।सरकारी संरक्षण के बिना मुमकिन नहीं ये फ़िल्में।
सूफ़ी सैफुल्लाह क़ादरी साहब ने सवाल उठाया कि जब नूपुर शर्मा के विवादित बयानों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई, तब सरकार ने अब तक कोई कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं की? उसी ज़हरीले बयान को इस फिल्म में शामिल करना, इस बात का संकेत है कि यह केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक पूर्व-नियोजित राजनीतिक अभियान है। सेंसर बोर्ड, सरकार और सत्तारूढ़ दलों पर भी सवाल उठाते हुए कहा जब संवैधानिक संस्थाएं मौन हो जाएं और नफ़रत फैलाने वालों को मंच और समर्थन मिले — तो यह लोकतंत्र नहीं, एक ख़तरनाक दिशा है।ख़ामोशी विकल्प नहीं ग़ौसे आज़म फ़ाउंडेशन के चेयरमैन ने सभी नागरिकों से अपील की कि अब वक़्त आ गया है कि नफ़रत के हर माध्यम, हर मंच और हर रूप का खुलकर विरोध किया जाए।यह केवल मुस्लिम समुदाय का मुद्दा नहीं है, बल्कि हर उस भारतीय का है जो इस मुल्क की आत्मा — संविधान, समानता, और भाईचारे — को ज़िंदा रखना चाहता है।हमें क़ानूनी, सामाजिक, शैक्षिक और डिजिटल हर मोर्चे पर आवाज़ बुलंद करनी होगी।इतिहास साक्षी है — नफ़रत का अंजाम विनाश होता है"
सूफ़ी सैफुल्लाह क़ादरी ने कहा कि हिटलर ने भी प्रोपेगेंडा फिल्मों और झूठे प्रचार से शुरुआत की थी — और फिर पूरी इंसानियत ने उसका अंजाम देखा। आज अगर हम नहीं चेते, तो कल को हालात संभालना हमारे वश से बाहर हो जाएगा। नफ़रत की आग एक दीवार नहीं, पूरा शहर जलाती है
यान के अंत में उन्होंने कहा अगर आज नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताख़ी पर हम चुप हैं, तो कल को किसी और धर्म, संप्रदाय या वर्ग की बारी भी आ सकती है।यह वक़्त है कि हम क़लम, ज़बान, क़ानून और जन-जागरूकता के माध्यम से जवाब दें। वरना इतिहास और हमारी आने वाली नस्लें हमें माफ़ नहीं करेंगी।
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