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मुहर्रम की पहली तारीख़ आज, नये इस्लामी साल का आगाज।

सत्य के लिए लड़ते हुए शहीद हुए इमाम हुसैन : मुफ्ती अख़्तर हुसैन 

सैय्यद फरहान अहमद

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

माहे मुहर्रम की पहली तारीख़ है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु व उनके साथियों द्वारा दी गई अज़ीम कुर्बानी की याद ताजा हो गई है। रविवार की शाम से नये इस्लामी साल यानी 1446 हिजरी का आगाज हो गया। उलमा किराम ने मस्जिदों में ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल में हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके साथियों की फज़ीलत बयान की। माहे मुहर्रम का चांद होते ही रात की नमाज़ के बाद मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों में चहल पहल बढ़ गई। फातिहा ख्वानी हुई। लोग सोशल मीडिया के जरिए एक दूसरे को नये इस्लामी साल की मुबारकबाद भी पेश कर रहे हैं। वहीं मियां बाजार स्थित इमामबाड़ा इस्टेट के सभी दरवाजे खोल दिए गए हैं। 

मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में दस दिवसीय ‘जिक्रे शहीदे आज़म’ महफिल के पहले दिन मुफ्ती-ए-शहर अख़्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि जालिम यजीद के अत्याचार बढ़ने लगे तो उसने पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन से अपने कुशासन के लिए समर्थन मांगा और जब हज़रत इमाम हुसैन ने इससे इंकार कर दिया तो उसने इमाम हुसैन को कत्ल करने का फरमान जारी कर दिया। कर्बला के तपते रेगिस्तान में तीन दिन के भूखे प्यासे हज़रत इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों को शहीद कर दिया गया। अहले बैत पर बहुत जुल्म किए गए। 

कारी मोहम्मद अनस रजवी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन सन् चार हिज़री को मदीना में पैदा हुए। आपकी मां का नाम हज़रत सैयदा फातिमा ज़हरा व पिता का नाम हजरत सैयदना अली है। हज़रत सैयदना इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम के सिद्घांत, न्याय, धर्म, सत्य, अहिंसा, सदाचार और अल्लाह के प्रति अटूट आस्था को अपने जीवन का आदर्श माना था और वे उन्हीं आदर्शों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते रहे। हजरत सैयदना इमाम हुसैन मक्का से सपरिवार कूफा के लिए निकल पड़े लेकिन रास्ते में यजीद के षडयंत्र के कारण उन्हें कर्बला के मैदान में रोक लिया गया। तब इमाम हुसैन ने यह इच्छा प्रकट की कि मुझे सरहदी इलाके में चले जाने दो, ताकि शांति और अमन कायम रहे, लेकिन जालिम यजीद न माना। आखिर में सत्य के लिए लड़ते हुए हज़रत इमाम हुसैन शहीद हुए। आप बहुत बहादुर थे। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान, तरक्की व भाईचारे की दुआ मांगी गई।

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Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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