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औरतों पर जुमा की नमाज़ फ़र्ज़ नहीं है - उलमा किराम

सैय्यद फरहान अहमद

गोरखपुर उत्तर प्रदेश।

उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमज़ान हेल्प लाइन नंबर पर रोज़ा, नमाज, जकात, सदका-ए-फित्र व ईद की नमाज़ आदि के बारे में सवाल आते रहे। उलमा किराम ने शरीअत की रोशनी में जवाब दिया।

1. सवाल : औरतों पर जुमा की नमाज़ पढ़ने का क्या हुक्म है? (शादाब, गेहूंआ सागर)

जवाब : जुमा की नमाज़ मर्दों पर फ़र्ज़ है। औरतों पर जुमा की नमाज़ फर्ज नहीं। वह रोज़ाना की तरह नमाज़े जोहर अदा करें।(मुफ्ती अख्तर)

2. ईद की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना कैसा है? (जुबैर, गोरखनाथ)

जवाब : ईदैन की नमाज़ वाजिब है और उसके लिए खुले मैदान में निकलकर अदा करना सुन्नत है, बगैर किसी उज्र के ईद की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना खिलाफे सुन्नत है। अलबत्ता किसी उज्र की वजह से ईदगाह या खुले मैदान में नमाज़ पढ़ना मुश्किल हो तो मस्जिद में पढ़ना जायज़ है। (मुफ्ती अजहर)

3. सवाल : अगर नमाज़ में सूरह फातिहा पढ़ने के बाद सूरत मिलाना भूल जाए और रुकु में याद याद आए तो क्या करें? (अदहम, छोटे काजीपुर)

जवाब : अगर सूरत मिलाना भूल जाए फिर रुकु में याद आए तो खड़ा हो जाए और सूरत मिलाए फिर रुकु करे और आखिर में सजदा-ए-सह्व करे। (मौलाना जहांगीर अहमद)

4. सवाल : नमाजे चाश्त कितनी रकात है? (मो. आज़म, खोखर टोला)

जवाब : चाश्त की नमाज़ मुस्तहब है। कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा बारह रकात है। हुजूर अलैहिस्सलाम ने फरमाया जो चाश्त की दो रकातों पर मुहाफजत करे उसके गुनाह बख्श दिए जाएंगे, अगरचे समंदर के झाग के बराबर हों। (मौलाना मोहम्मद अहमद)

Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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