सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पहली बीवी उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हज़रत सैयदा खदीजा तुल कुबरा रदियल्लाहु अन्हा की याद में सामूहिक कुरआन ख्वानी हुई। उनकी ज़िंदगी पर रोशनी डाली गई। उनका यौमे विसाल (निधन) दस रमज़ान को हुआ था।
मस्जिद के इमाम मौलाना महमूद रज़ा कादरी ने कहा कि हज़रत खदीजा बहुत बुलंद किरदार, आबिदा और जाहिदा महिला थीं। हज़रत खदीजा ने गरीब मिस्कीनों की मिसाली इमदाद (मदद) की। अपने व्यापार से हुई कमाई को हज़रत खदीजा गरीब, अनाथ, विधवा और बीमारों में बांटा करतीं थीं। हज़रत खदीजा ने अनगिनत गरीब लड़कियों की शादी का खर्च भी उठाया और इस तरह एक बेहद नेक और सबकी मदद करने वाली महिला के रूप में दीन-ए-इस्लाम ही नहीं पूरे विश्व के इतिहास में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। पैग़ंबरे इस्लाम ने जब ऐलान-ए-नुबूवत किया तो महिलाओं में सबसे पहले ईमान लाने वाली महिला हज़रत खदीजा थीं। खातूने जन्नत हज़रत फातिमा उन्हीं की बेटी हैं।
उन्होंने कहा कि हज़रत खदीजा का मक्का शरीफ में कपड़े का बहुत बड़ा व्यापार था। उनका कारोबार कई दूसरे मुल्कों तक होता था। हज़रत खदीजा की बताई तालीमात पर अमल करके दुनिया की तमाम महिलाएं दीन व दुनिया दोनों संवार सकती है। हज़रत खदीजा ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़्लाक, किरदार, मेहनत, लगन और ईमानदारी से प्रभावित होकर निकाह का पैग़ाम भेजा, जिसे उन्होंने कुबूल कर लिया। उस वक्त पैग़ंबरे इस्लाम की उम्र 25 साल जबकि हज़रत खदीजा की उम्र चालीस साल थी। वह बेवा (विधवा) थीं। इस तरह हजरत खदीजा पैग़ंबरे इस्लाम की पहली बीवी बनीं। अंत में सलातो-सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। इस मौके पर हाफिज नजरे आलम कादरी, असलम, मुन्ना, फुजैल, फैजान, हाफिज शारिक, सैफ अली आदि मौजूद रहे।
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