Tranding

विश्व के लिए सनातन पथ का आलोकपुंज बना गीता प्रेस - प्रधानमंत्री

शताब्दि वर्ष के समापन समारोह में प्रधानमंत्री का उद्बोधन।

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

आज सनातन संस्कृति की अविरल यात्रा में एक पन्ना स्वर्णजड़ित जुड़ गया। गीताप्रेस के परिसर में भारत के प्रधानमंत्री का उद्बोधन कोई सामान्य घटना नहीं है। सनातन परंपरा को मानने वाले करोड़ों घरों में सनातनता के ग्रंथ पहुंचाने वाले गीता प्रेस की सी स्थापना के शताब्दी वर्ष के समापन का समारोह कोई सामान्य आयोजन तो नही है न। ऐसे अवसर पर सनातन के महायोद्धा के रूप में विगत नौ वर्षों से निरंतर कार्यरत , युद्धरत भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी का यहां आना और सनातन मूल्यों पर केंद्रित अपने अत्यंत सारगर्भित और ओजस्वी संबोधन में गोरखपुर, गीताप्रेस , सेठ जयदयाल जी गोयनका, भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार और इसी के साथ कल्याण की यात्रा में गांधी जी की भूमिका को जिस सलीके से उन्होंने उद्धृत किया वह अद्भुत ही कहा जायेगा। प्रधानमंत्री ने उस अनगढ़, अनावश्यक विरोध के उन स्वरों को भी सटीक उत्तर दे दिया जो गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने के बाद उपजे थे। वास्तव में यह क्षण अद्भुत था। सेठ जी और भाई तो ब्रह्मलीन होकर भी सूक्ष्म स्वरूप में इस परिसर में सदैव विराजमान ही हैं लेकिन एक वर्तमान तपस्वी के रूप में आचार्य लालमणि जी तिवारी के लिए यदि कुछ शब्द नहीं अर्पित किए जाएंगे तो बात अधूरी रह जायेगी।

गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों की रूप रेखा को बनते, और आकार लेते बहुत करीब से देखा है। शताब्दी वर्ष अभी शुरू भी नहीं हुआ था , वर्ष 2020 में संस्कृति पर्व के एक ऐसे विशेष अंक का लोकार्पण था जिसमें कल्याण के वर्ष 1946 का वह अंक समायोजित किया गया था जिसको ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। यह लोकार्पण कोरोना काल में माननीय गृहमंत्री श्री अमित शाह जी के कर कमलों से हुआ। उस समारोह में आचार्य लालमणि तिवारी जी भी उपस्थित थे। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी भी उसमे उपस्थित थे। समारोह के पश्चात आचार्यद्वय से भारत सरकार यानी गृहमंत्रालय से संवाद शुरू हुआ। उसी दौरान पता नही किन लोगों साजिश के तहत गीताप्रेस के आर्थिक संकट का शिगूफा सोशल मीडिया पर फैला दिया था। 

गीताप्रेस कभी भी ऐसे किसी संकट में नहीं रहा है। यह संस्थान विगत सौ वर्षों में निरंतर अपना विस्तार ही करता रहा है और किसी बाहरी सहयोग की इसे कभी आवश्यकता नहीं पड़ी। यहां तक कि इस बार संस्थान को मिले गांधी शांति पुरस्कार में से भी संस्थान ने केवल पुरस्कार ही लेने का निर्णय लिया और पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ की राशि लेने से मना कर दिया। 

ऐसे गीता प्रेस की सौ वर्षों किसी यात्रा के इस पड़ाव का आरंभ तत्कालीन राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोबिंद के हाथों हुआ जिसे आज प्रधान मंत्री जी ने पूर्णता प्रदान करते हुए यह उम्मीद भी जताई कि गीताप्रेस को संचालित करने वाले कंधो की मजबूती अब आगे की यात्रा के लिए बहुत जरूरी है। निश्चित रूप से गीताप्रेस ट्रस्ट से जुड़े सभी लोग बहुत बधाई और आदर के पात्र हैं जो बिना किसी स्व प्रचार के सनातन की इस यात्रा को अविरल बनाए हुए हैं। 

गोरखपुर और गोरक्षपीठ एक दूसरे के पूरक हैं। गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी इस समय उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री हैं। हिंदुत्व और विकास हमेशा से उनका उद्घोष रहा है। गीताप्रेस के शताब्दी वर्ष के आरंभ और आज समापन के इस आयोजन में योगी जी की सक्रिय भूमिका सर्वविदित है। निश्चित रूप से उनका प्रयास फलीभूत हुआ है। विकसित गोरखपुर और सनातन आस्था का केंद्र गोरखपुर आज सभी के समक्ष है। 

आचार्य लालमणि जी के बारे यह लिखना उचित है कि उनकी शिक्षा और योग्यता ऐसी थी कि किसी महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में शिक्षक होकर अपना जीवन आराम से गुजार सकते थे लेकिन उन्होंने गीताप्रेस में सेवा का संकल्प लिया और ईश्वर ने उन्हें यह प्रतिफल प्रदान किया कि अपने कार्य परिसर में उन्हें राष्ट्रपति जी और प्रधानमंत्री जी के मंच संचालन का सौभाग्य मिला। निश्चित रूप से एक आचार्य की सत्यनिष्ठा का ही फल है। प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल जी इन दोनो कार्यक्रमों में उपस्थित भी रहीं और साक्षी भी। यह बहुत ही सुखद है। आज गीताप्रेस के प्रांगण से प्रधानमंत्री जी के सनातन संकल्प और संबोधन ने विश्व को नया संदेश दिया है।



साभार - संजय तिवारी

Jr. Seraj Ahmad Quraishi
60

Leave a comment

Most Read

Advertisement

Newsletter

Subscribe to get our latest News
Follow Us
Flickr Photos

© Copyright All rights reserved by India Khabar 2025