धनंजय शर्मा
बेल्थरा रोड, बलिया। सुखी नहरें, किसान बेहाल। वैसे तो सूखा एक प्राकृतिक आपदा है लेकिन सूखे से निपटने के लिए सबसे महत्वपूर्ण संसाधन हैं नहरें। और नहरों की दशा लगभग दो दशकों से इतनी खराब है कि नहरों से किसानों को पानी ही नहीं मिलता लेकिन एक बात है इन नहरों की वर्ष में दो बार सिल्ट सफाई के नाम पर अधिकारियों और ठेकेदारों की आमदनी जरूर हो जाती है। दोहरीघाट सहायक सिंचाई परियोजना की निकलने वाली सहायक नहर परियोजना जो तुर्तीपार (उभांव) से निकलती है जिससे बलिया जनपद के सुदूरवर्ती इलाकों में सिंचाई होती है। लेकिन कहते हैं न, कि चिराग तले अंधेरा ! यही कहावत यहां भी चरितार्थ होती है। बेल्थरा रोड के अगल-बगल की छोटी नहरों में पानी ही नहीं है।
समाजसेवी विनोद मानव ने बताया कि यहां तहसील क्षेत्र की नहरों में पानी नहीं होना क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के निष्क्रियता का परिणाम है। सूखे की मार से किसानों के खेतों में 10% भी धान की रोपाई नहीं हो सकी है, उन्होंने बताया कि चकसेखानी, भीटा, रामगढ़, भिटौरा, भुवारी, जिउतपुरा, गंगऊपुर, भदहर, खडेजी आदि गांवों की हजारों एकड़ धान की रोपाई बाधित है। इन गांवों के किसान निजी पंपों से पानी चला कर धान की रोपाई करने को मजबूर हैं।
राजीव यादव, फुल बदन, अनिल, राजेश यादव, रामाश्रय, राधेश्याम आदि किसानों ने भी अपनी व्यथा से संबंधित अधिकारियों सहित जनप्रतिनिधियों का ध्यान आकृष्ट कराया है।
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