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मुहर्रम की पहली तारीख़ आज, नए इस्लामी साल का आगाज।

सत्य के लिए लड़ते हुए शहीद हुए इमाम हुसैन - आलिमा नाजमीन 

सैय्यद फरहान अहमद

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

गुरुवार को माहे मुहर्रम की पहली तारीख़ है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु व उनके साथियों द्वारा दी गई अज़ीम कुर्बानी की याद ताजा हो गई है। बुधवार की शाम से नए इस्लामी साल यानी 1445 हिजरी का आगाज हो गया। उलमा किराम ने मस्जिदों में ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल में हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके साथियों की फज़ीलत बयान की। माहे मुहर्रम का चांद होते ही रात की नमाज़ के बाद मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों में चहल पहल बढ़ गई। फातिहा ख्वानी हुई।

मस्जिद फैजाने इश्के रसूल शहीद अब्दुल्लाह नगर में दस दिवसीय ‘जिक्रे शहीदे आज़म’ महफिल के पहले दिन मुफ्ती-ए-शहर अख़्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि जालिम यजीद के अत्याचार बढ़ने लगे तो उसने पैगंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन से अपने कुशासन के लिए समर्थन मांगा और जब हज़रत इमाम हुसैन ने इससे इंकार कर दिया तो उसने इमाम हुसैन को कत्ल करने का फरमान जारी कर दिया। कर्बला के तपते रेगिस्तान में तीन दिन के भूखे प्यासे हज़रत इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों को शहीद कर दिया गया। अहले बैत पर बेइंतहा जुल्म किए गए। 

मदरसा जामिया कादरिया तजवीदुल कुरआन लिल बनात अलहदादपुर में महिलाओं के तीन दिवसीय 'जिक्रे शहीद-ए-कर्बला' कार्यक्रम बुधवार से शुरू हुआ। जिसमें आलिमा नाजमीन फातिमा सुल्तानी व सामिया कादरी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन सन् चार हिज़री को मदीना में पैदा हुए। आपकी मां का नाम हज़रत सैयदा फातिमा ज़हरा व पिता का नाम हजरत सैयदना अली है। हज़रत सैयदना इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम के सिद्घांत, न्याय, धर्म, सत्य, अहिंसा, सदाचार और अल्लाह के प्रति अटूट आस्था को अपने जीवन का आदर्श माना था और वे उन्हीं आदर्शों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते रहे। हजरत सैयदना इमाम हुसैन मक्का से सपरिवार कूफा के लिए निकल पड़े लेकिन रास्ते में यजीद के षडयंत्र के कारण उन्हें कर्बला के मैदान में रोक लिया गया। तब इमाम हुसैन ने यह इच्छा प्रकट की कि मुझे सरहदी इलाके में चले जाने दो, ताकि शांति और अमन कायम रहे, लेकिन जालिम यजीद न माना। आखिर में सत्य के लिए लड़ते हुए हज़रत इमाम हुसैन शहीद हुए। आप बहुत बहादुर थे। नात व मनकबत नौशीन फातिमा कादरी व फरहीन फातिमा ने पेश की। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान, तरक्की व भाईचारे की दुआ मांगी गई।

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Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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