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यौम-ए-आशूरा पर ग़ौसे आज़म फाउंडेशन की रूहानी पेशकश — हुसैनी फल और सामूहिक रोज़ा इफ़्तार।

भारत समाचार एजेंसी

सेराज अहमद कुरैशी

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

जहां एक तरफ़, पवित्र यौमे आशूरा ख़ुराफ़ात और शैतानी कामों से कुछ लोग अपना मनोरंजन करते हैं, वहीं ग़ौसे आज़म फाउंडेशन (GAF) ने दिखा दिया कि यह पवित्र दिन, ख़ुराफ़ात और शैतानी कामों कामों का नहीं बल्कि इनसे बचने और फ़रायज़ व वाजिबात को समय पर अदा करने से ही शहीदाने करबला की रूहें ख़ुश होती हैं। हुसैनी अमल का मतलब है — राहत, रवादारी और रूहानियत का ज़िंदा इज़हार। ❞

*सुबह 9 बजे: दुआ-ए-आशूरा ने दिलों को रौशन कर दिया*

* सुन्नी मर्कज़ी मदीना मस्जिद में सुबह 9 बजे "दुआ-ए-आशूरा" पढ़ी गई। सैकड़ों हुसैनी अक़ीदतमंदों ने एक साथ, अल्लाह की बारगाह में दुआओं के लिए, अपने हाथों को उठाया और दुआओं से फिज़ा को रूहानी बना दिया। हज़रत इमाम हुसैन की क़ुर्बानियों को याद करते हुए, मुल्क, उम्मत और इंसानियत की भलाई के लिए ख़ुसूसी दुआएं की गईं।

*अस्र के बाद: दरगाह हज़रत आरिफ़ पर बांटा गया हुसैनी फ़ल*

* ग़ौसे आज़म फाउंडेशन की जानिब से अस्र की नमाज़ के बाद दरगाह हज़रत क़ाज़ी सय्यद मोहम्मद आरिफ़ रहमतुल्लाह अलैहे के साए में, "हुसैनी फल" बांटा गया। यह सिर्फ़ फल नहीं थे, बल्कि मोहब्बत, अ़क़ीदा और हुसैनी जज़्बे से भरा एक पैग़ाम था।

*मग़रिब से पहले: दो मस्जिदों में सामूहिक रोज़ा इफ़्तार — एकता की जीती-जागती तस्वीर*

* सुन्नी मर्कज़ी मदीना मस्जिद

* सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद

* दोनों मस्जिदों में आज का इफ़्तार कुछ ख़ास था। रोज़ेदारों ने साथ बैठकर, एक साथ दुआ की, खजूर से रोज़ा खोला। समोसे सबील समेत केला, आम, ख़रबूज़े, मौसम्मी आदि जैसे ताजे फ़ल लोगों में इस अंदाज़ से बांटे गए, जैसे रोजेदारों को राहत दी जा रही हो। एकजुट होकर इंसानियत का वह पैग़ाम पेश किया जो कर्बला से निकला और आज यहां ज़िंदा हो गया।

*चेयरमैन सूफ़ी सैफुल्लाह क़ादरी साहब का बयान:*

* "हम चाहते हैं कि हर मोहर्रम — एक्शन का मोहर्रम बने। जहां भूखे को खाना, प्यासे को पानी, और मायूस को राहत मिले। यही हुसैनियत है। यही सच्चा इन्क़लाब है।"

*जिला अध्यक्ष समीर अली ने कहा:*

* "आज 10 दिन का हुसैनी सफर मुकम्मल हुआ — लेकिन हमारा कारवां अब शुरू होता है। हम चाहते हैं कि हमारा हर दिन, हर काम हुसैनी हो। ग़ौसे आज़म फाउंडेशन ने दिखा दिया कि मोहर्रम, अमल का नाम है।"

*सेहत और समाज के फ़ायदे:*

* हुसैनी फल: विटामिन्स, एनर्जी, रोग प्रतिरोधक क्षमता में इज़ाफा, और गर्मी में राहत

* सामूहिक रोज़ा इफ्तार: दिलों में जुड़ाव, भाईचारे का विस्तार

* दुआ-ए-आशूरा: रूहानी तरक़्क़ी, तज़्किया-ए-नफ़्स, इंसानी हमदर्दी में इज़ाफ़ा

*शुक्रिया और दुआओं से भरी विदाई*

* आज GAF के तमाम ट्रस्टियों, मेम्बरों, क़ाज़ियों, सहयोगियों और वॉलंटियर्स का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया गया। उनकी मेहनत, मोहब्बत और नीयत ने इस मोहर्रम को अमल वाला बना दिया। उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए ख़ुसूसी दुआएं मांगी गईं।

*अब अगला क़दम: पूरे साल हुसैनी अमल को ज़िंदा रखना*

* ग़ौसे आज़म फाउंडेशन की इस पेशकश ने साबित कर दिया कि नेकी का अमल मोहर्रम में शुरू होकर पूरे साल चलना चाहिए।

* हुसैनी बनने का मतलब सिर्फ़ दस दिन नहीं, बल्कि हर दिन मोहब्बत, राहत और इंसानियत फैलाना है।

आप भी इस क़ाफ़िले में शामिल होइए। ग़ौसे आज़म फाउंडेशन का हिस्सा बनिए — नेकी, अमन और इन्क़लाब का पैग़ाम आगे बढ़ाइए।

Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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