सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
रमज़ानुल मुबारक का बाबरकत महीना धीरे-धीर रुखसत हो रहा है। रोजेदारों की इबादत में कोई कमी नहीं है। बुधवार को 23वां रोजा इबादत में बीता। ईद की खरीदारी जोर पकड़ चुकी है। बाज़ार रात-रात भर गुलज़ार रह रहे है। अमीर-गरीब सभी चाहते हैं कि ईद में कोई कमी न रह जाए इसलिए लोग बाकायदा सामानों की लिस्ट बनाकर चल रहे हैं। लोग रोज़ा रखकर खरीदारी कर रहे हैं। दिन-रात बाज़ार भरा रह रहा है। दर्जियों की दुकानें देर रात तक खुली रह रही हैं। शाह मारुफ, रेती में तो अमीनाबाद जैसा नज़ारा दिख रहा है। फुटपाथ के दुकानदार चिल्ला-चिल्ला कर ग्राहकों को बुला रहे हैं।
मकतब इस्लामियात तुर्कमानपुर के शिक्षक हाफिज अशरफ रज़ा इस्माईली ने कहा कि सभी जानते हैं कि रमज़ान माह के ठीक बाद शव्वाल माह की पहली तारीख़ को ईद मनाई जाती है। रमज़ान की पहचान रोज़ा रखने और रोज़ों की पहचान सुबह सादिक से लेकर सूरज डूबने तक भूखा-प्यासा रहना माना जाता है, लेकिन रोज़े रखने के पीछे का उद्देश्य हम जानेंगे तो पाएंगे कि यह सोशलिस्ट समाज के काफी करीब है। एक ऐसा समाज जो न सिर्फ इंसानियत की बात करता है, बल्कि उसके रास्ते में आने वाली मुश्किलों को प्रायोगिक तौर पर खुद के ऊपर आज़माता है। जकात अदा करने के पीछे का सही मकसद यह है कि आपकी दौलत पर आपके आसपास के उन तमाम मुसलमानों का हक़ है, जो ग़रीब और बदहाल हैं।
शिक्षक हाफिज सैफ अली ने कहा कि जिस तरह हम रोज़े में खाने-पीने और अन्य कामों से अल्लाह के हुकूम की वजह से रुके रहते हैं उसी तरह हमारी पूरी ज़िंदगी अल्लाह के अहकाम के मुताबिक़ होनी चाहिए। हमारी रोज़ी रोटी और हमारा लिबास हलाल कमाई का हो। हमारी ज़िंदगी का तरीक़ा पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा किराम वाला हो ताकी हमारी रूह हमारे जिस्म से इस हाल में जुदा हो कि हमें, हमारे वालिदैन और सारे इंसान व जिन्नात का पैदा करने वाला अल्लाह हमसे राजी व खुश हो। दारे फानी से दारे बक़ा की तरफ कूच के वक्त अगर हमारा अल्लाह हमसे राज़ी व खुश है तो इंशाअल्लाह हमेशा-हमेशा की कामयाबी हमारे लिए मुक़द्दर होगी कि इसके बाद कभी भी नाकामी नहीं है।
© Copyright All rights reserved by India Khabar 2025