मोहम्मद आजम
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
रमज़ान महीने के तीसरी अशरे की पांच ताक रातों में शब-ए-कद्र को तलाश किया जाता है। यह रात 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं व 29वीं की रात है। हदीस में है कि इन सभी रातों में से सबसे अफजल 27वीं की रात मानी जाती है। शब-ए-कद्र को रात भर इबादत के बाद मुसलमान अपने रिश्तेदारों, अजीज़ों - अकारीबों की कब्रों पर फातिहा पढ़कर उनके लिए मगफिरत की दुआ भी की जाती है। इस रात में अल्लाह की इबादत करने वाले मोमिन के दर्जे बुलंद हो जाते हैं। गुनाह बख्श दिए जाते हैं, दोजख की आग से निजात मिलती है। वैसे तो पूरे माह माहे रमजान में बरकतों और रहमतों की बारिश होती है। यह अल्लाह की रहमत का ही सिला है रमजान में एक नेकी के बदले 70 नेकियाँ नामे आमाल में जुड़ जाती हैं। लेकिन शब-ए-कद्र की विशेष रात में तिलावत, इबादत और दुआएं कबूल व मकबूल होती हैं।
अल्लाह ताला की बारगाह में रो-रो कर अपने गुनाहों की माफी तलब करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस रात अल्लाह ताला नेक व जायज़ तमन्नाओं को पूरा फरमाता है। शब-ए-कद्र की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि अल्लाह ताला ने अपने बंदों की रहनुमाई के लिए इसी रात में कुरआन शरीफ को आसमान से जमीन पर उतारा था। यही वजह कि इस रात में कुरआन की तिलावत शिद्दत से की जाती है। शब-ए-कद्र गुनाहगारों के लिए तौबा के जरिए अपने गुनाहों पर पश्चाताप करने और माफी मांगने का बेहतरीन मौका होता है। अकीदत और ईमान के साथ इस रात में इबादत करने वालों के पिछले सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। गुनाह दो तरह के होते हैं, पहला कबीरा गुनाह और सगीरा गुनाह , कबीरा गुनाह माफ कराने के लिए सच्ची तौबा लाजमी है। यानी इस यकीन और इरादे के साथ तौबा की जाए कि आइंदा दोबारा ऐसा गुनाह नहीं होगा।
पत्रकार से वार्ता करते हुए मदरसा आमिना एकेडमी के प्रबंधक मोहम्मद आकिब अंसारी ने कहा कि हम सभी को इस रात की कद्र करते हुए इसकी खूबियों को अपने दामन में जमा करने की हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि, इस दौर में हमसे कई बेशुमार गुनाह हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि दुनियावी जिंदगी खत्म हो जाएगी लेकिन आखिरत हमेशा बाकी रहेेगी। शब-ए-कद्र हमारे लिए ऐसा इनाम है, जिस की जितनी भी कद्र की जाए कम है।
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