सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर उत्तर प्रदेश।
मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि भूखे-प्यासे रहकर इबादत में खो जाने वाले रोजेदार बंदे खुद को अल्लाह के नजदीक पाते हैं और आम दिनों के मुकाबले रमज़ान में इस क़ुर्बत (करीबी) के एहसास की शिद्दत बिल्कुल अलग होती है, जो आमतौर पर बाकी के महीनों में नहीं होती है। रमज़ान की फज़ीलतों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है, मगर उसका बुनियादी सबक यह है कि हम सभी उस दर्द को समझें जिससे दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रोजाना दो-चार होता है। जब हमें खुद भूख लगती है तभी हमें गरीबों की भूख का एहसास हो सकता है। रमज़ान के महीने में ही कुरआन-ए-पाक दुनिया में उतरा था, लिहाजा इस महीने में तरावीह के रूप में कुरआन-ए-पाक सुनना बेहद सवाब का काम है। रमज़ान का महीना हममें इतना तक़वा (परहेजगारी) पैदा कर सकता है कि सिर्फ रमज़ान ही में नहीं बल्कि उसके बाद भी ग्यारह महीनों की ज़िन्दगी भी सही राह पर चल सके। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मशहूर फरमान है कि जिसने ईमान के साथ सवाब की नियत से यानी खालिस अल्लाह की खुशनूदी हासिल करने के लिए रोज़ा रखा उसके पिछले तमाम गुनाह माफ़ फरमा दिए जाते हैं।
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