शहाबुद्दीन अहमद
बेतिया, बिहार।
लोक आस्था का महान पर्व छठ पर छठव्रतियों के द्वारा कोसी भराई के पीछे श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होने का धोताक है,तब वह बड़ी ही श्रद्धा के साथ छठ के तीसरे दिन शाम के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर पर कोसी भराई की पश्चात परंपरा पूरी करते हैं।
डूबते सूरज को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं घरों के आंगन में कम से कम पांच ईंख की मदद से कोसी का निर्माण करती हैं, और कोसी के बीच कुमहार द्वारा दिए गए गणेश स्वरूप हाथी रखकर उसे दीपों से सजाती हैं। नए सूती कपड़ों में प्रसाद रखकर उसे ईंख के बीच लपेटकर टांग देती हैं,इस दौरान महिलाएं गीत भी गाती हैं। सुबह के अर्घ्य में घाटों पर कोसी भराई सजाई जाती है, अर्घ्य देने के बाद अर्पित प्रसाद को नदी,तालाबों में प्रवाहित कर श्रद्धालु इंख को लेकर घर लौट जाते हैं। कोसी भराई में इस्तेमाल किए गए पांच तत्व होते हैं,यह पांच में भूमि,वायु, जल,अग्नि व आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं। मान्यता के अनुसार अगर कोई मन्नत मांगता है और वह छठ मैया की कृपा से पूरी हो जाती है तो उसे कोसी भरना पड़ता है। जोड़े में कोसी भरना शुभ माना जाता है,कहा जाता है कि कोसी भराई के जरिए छठ मैया का आभार व्यक्त किया जाता है।
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