गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
ईद मिलादुन्नबी की पूर्व संध्या पर बुधवार को नौजवान कमेटी की ओर से गेहुंआ सागर में जलसा-ए-ईद मिलादुन्नबी हुआ। संचालन हाफिज रहमत अली निजामी ने किया।
मुख्य वक्ता मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी व कारी मोहम्मद अनस रजवी ने आखिरी पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी व सीरत पर रौशनी डालते हुए कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसे जमाने में जन्म लिया, जब अरब के हालात बहुत खराब थे। बच्चियों को ज़िंदा दफ़न कर दिया जाता था। विधवाओं के साथ बुरा सुलूक होता था। छोटी-छोटी बात पर तलवारें निकल जाती थीं। अरब का समाज कबीलों में बंटा था। इंसानियत शर्मसार हो रही थी। ऐसे समय में इंसानों की रहनुमाई के लिए इस्लामी माह रबीउल अव्वल शरीफ की 12 तारीख को अरब के मक्का शहर में पैगंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म हुआ। वालिद का नाम हज़रत अब्दुल्लाह व वालिदा का नाम हज़रत आमिना था। दादा हजरत अब्दुल मुत्तलिब थे। बचपन में वालिद का साया उठ गया। आपके दादा ने परवरिश की। पैग़ंबरे इस्लाम ने जब अल्लाह का पैग़ाम आम करना शुरु किया तो उस दौर के मक्का में रहने वाले लोगों को काफी बुरा लगा। आपको तरह-तरह की तकलीफें दी गईं। आपने हर ज़ुल्म का डटकर सामना किया। आपको मक्का से हिजरत करने पर मजबूर किया गया। आप मदीना शरीफ चले गए। इतनी परेशानियों के बाद भी आपने अपने मिशन को नहीं छोड़ा और अल्लाह के पैग़ाम को पूरी दुनिया में पहुंचाया। आपने मजलूमों, गुलामों, औरतों, बेसहारा, यतीमों को उनका हक़ दिलाया। अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। जलसे में हाफिज मो. आरिफ रज़ा, शादाब अहमद, मो. इसराइल खान, साहिल खान, शमशाद खान, मो. इस्तेखार खान, नूर मोहम्मद, शाहिद खान, सद्दाम खान आदि मौजूद रहे।
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