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'बुद्धिस्ट सर्किट इन बिहार:ए हॉलिस्टिक डेवलपमेंट' विषय पर मगध विश्वविद्यालय बोधगया में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

रिपोर्ट:विनोद विरोधी

गया।मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के भूगोल विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “बुद्धिस्ट सर्किट इन बिहार : ए होलिस्टिक डेवलपमेंट” का शुभारंभ आज राधाकृष्णन सभागार, शिक्षा विभाग में भव्य रूप से सम्पन्न हुआ। यह संगोष्ठी आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के तत्वावधान में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद , नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित की गई है। प्रारंभ दीप प्रज्वलन, कुलगीत एवं स्वागत गीत से हुआ, जिसने वातावरण को गरिमामय बना दिया। अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ , अंगवस्त्र एवं स्मृतिचिन्ह से किया गया।

मुख्य अतिथि प्रो सिद्धार्थ सिंह, कुलपति, नव नालंदा महाविहार, नालंदा ने उद्घाटन सत्र में अपने कीनोट भाषण में बिहार की बौद्ध धरोहर की वैश्विक महत्ता को रेखांकित करते हुए इसे “भारत की सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर” के रूप में उभारने की आवश्यकता बताई। उन्होंने विशेष रूप से प्राचीन वैशाली में नारी सशक्तिकरण की मिसाल देते हुए बताया कि बौद्धकाल में भिक्षुणी संघ की स्थापना वैशाली में हुई थी, जो उस युग में महिलाओं को शिक्षा, आत्मनिर्णय और धार्मिक जीवन में भागीदारी प्रदान करने की दिशा में क्रांतिकारी कदम था। प्रो सिंह ने आधुनिक संदर्भों में इस परंपरा को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता जताई और इसे आज के सामाजिक विमर्श से जोड़ने का आह्वान किया। अपने वक्तव्य में उन्होंने प्रसिद्ध इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल के उद्धरण का उल्लेख करते हुए कहा कि बिहार का अतीत विश्व की सबसे महान बौद्धिक परंपराओं में से एक रहा है, जहाँ नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसे विश्वविद्यालयों ने सहस्त्रों वर्षों तक ज्ञान का प्रकाश फैलाया। उन्होंने कहा कि इसी विरासत को पुनर्जीवित करते हुए बिहार को आध्यात्मिक पर्यटन और वैश्विक संवाद का केंद्र बनाया जा सकता है। उन्होंने ‘शांति पदयात्राओं’ के माध्यम से गुरुपा और अन्य बौद्ध स्थलों पर जनजागरूकता फैलाने की पहल को भी आवश्यक बताया, ताकि आम जनमानस में सांस्कृतिक चेतना जागृत हो। कार्यक्रम की अध्यक्षता मगध विश्वविद्यालय के प्रो-वाइस चांसलर प्रो बीआरके सिन्हा ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में संगोष्ठी के विषय की सार्थकता को रेखांकित करते हुए बौद्ध परिपथ के सतत विकास में शोध, नीति, पर्यटन और समुदाय के समन्वय की आवश्यकता पर संक्षेप में प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रतिष्ठित सांस्कृतिक भूगोलवेत्ता प्रो राणा पीबी सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष , भूगोल विभाग ,प्रो राणा प्रताप, विश्वविद्यालय के संरक्षक एवं प्रति कुलपति प्रो बीआरके सिन्हा तथा सह संरक्षक, विज्ञान संकायाध्यक्ष एवं भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो वीरेंद्र कुमार मंचासीन रहे। संगोष्ठी के संयोजक प्रो उपेन्द्र कुमार ने स्वागत भाषण द्वारा विषय की पृष्ठभूमि एवं उद्देश्य स्पष्ट किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ मीनाक्षी एवं डॉ स्नेहा स्वरूप ने किया। धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डॉ पिंटू कुमार द्वारा प्रस्तुत किया गया। संगोष्ठी के पहले दिन तीन तकनीकी सत्रों एवं एक पैनल चर्चा का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। प्रो संजय इंगोले ने विषय “योजना और विकास में सामुदायिक सहभागिता: एक बौद्ध दृष्टिकोण” पर वक्तव्य दिया। प्रो. राणा पीबी सिंह ने “बौद्ध पवित्र धरोहर, स्थल की आत्मा, और तीर्थ पर्यटन का स्वरूप” पर प्रकाश डाला। प्रो राणा प्रताप ने “बिहार में बौद्ध परिपथ की संभावनाएं: उभरते मुद्दे एवं चुनौतियां” पर गहन चर्चा की। इस अवसर पर विभिन्न संकायों के डीन, विभागाध्यक्षगण, तथा विश्वविद्यालय के अनेक शिक्षकगण भी उपस्थित रहे, जिन्होंने संगोष्ठी की गरिमा को और समृद्ध किया। इस अवसर पर विभाग के सभी शिक्षक डॉ मौसमी, डॉ मीनाक्षी प्रसाद, डॉ नीरज सिंह, श्री राकेश कुमार, डॉ प्रीति कुमारी भी उपस्थित रहे, जिनका योगदान आयोजन की सफलता में उल्लेखनीय रहा।

देशभर से आए प्रतिभागियों की उपस्थिति एवं विद्वानों के सारगर्भित वक्तव्यों ने संगोष्ठी को अत्यंत सफल एवं उपयोगी बनाया।

Karunakar Ram Tripathi
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